सोयाबीन का विपुल उत्पादन
देश की उत्पादकता 10 कि./हे. हैं, जो कि एशिया की औसत उत्पादन 15 क्विं /हैक्ट०. की तुलना में काफी कम
है । अकेले मालवा जलवायु क्षेत्र में सोयाबीन का क्षेत्रफल लगभग 22 से 25 लाख है, अच्छादित है । इससे स्पष्ट है, कि प्रदेश में सोयाबीन का भविष्य इसी
क्षेत्र द्वारा नियंत्रित होता है । उज्जैन जिले में सोयाबीन की खेती लगभग 4.00 है, से अधिक क्षेत्र में की जाती है ।
यदि सोयाबीन उत्पादकता कमी के कारणों
पर प्रकाश डालेंगे तो हम पायेंगे कि सोयाबीन की खेती वर्तमान में विभिन्न प्रकार
की विषम परिस्थितियों से गुजर रही है अर्थात दिन प्रतिदिन इसकी खेती में विभिन्न
व्यय में अत्याधिक वृद्धि परिलक्षित हो रही है । जिससे कृषकों को आर्थिक दृष्टिकोण
से ज्यादा लाभ प्राप्त नहीं हो रहा है ।
खेत की तैयारी: -
मिट्टी परीक्षण
संतुलित उर्वरक प्रबंधन एवं मृदा
स्वास्थ्य हेतु मिट्टी का मुख्य तत्व जैसे नत्रजन, फासफोरस, पोटाश, द्वितियक पोषक तत्व जैसे सल्फर, केल्शियम, मेगनेशियम एवं सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे
जस्ता, तांबा, लोहा, मेगनीज़, मोलिब्डिनम, बोराॅन साथ ही पी.एच., ई.सी. एवं कार्बनिक द्रव्य का परीक्षण
करायें ।
ग्रीष्मकालीन जुताई
खाली खेतों की ग्रीष्म कालीन गहरी
जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से माह मार्च से 15 मई तक 9 से 12 इंच गहराई तक करें ।
- मृदा के भौतिक गुणों में सुधार होगा, जैसे मृदा में वातायन, पानी सोखने एवं जल धारण शक्ति, मृदा भुरभुरापन, भूमि संरचना इत्यादि ।
- खरपतवार नियंत्रण में सहायता प्राप्त होगी
।
- कीड़े मकोड़े तथा बिमारियों के नियंत्रण
में सहायक होता है ।
प्रजाति |
दिनांक |
नोटिफिकेशन नम्बर/ चिन्हितक्र. |
विशेषताएं |
जे. एस-335 |
2.9.1994 |
636(E) |
|
जे.एस. 93-05 |
4.9.2002 |
937(E) |
|
जे. एस.
95-60 |
20.7.2007 |
1178(E) |
|
जे.एस. 97-52 |
16.10.2008 |
2458(E) |
|
जे.एस. 20-29 |
2014 |
चिन्हित |
|
जे.एस. 20-34 |
2014 |
चिन्हित |
|
एन.आर.सी-7 |
01.05.1997 |
360(E) |
|
एन.आर.सी-12 |
1.05.1997 |
360(E) |
|
एन.आर.सी-86 |
2014 |
चिन्हित |
|
प्रमुख उन्नतशील प्रजातियां
अंकुरण क्षमता
बुवाई के पूर्व बीज की अंकुरण क्षमता (70%) अवश्य ज्ञात करें ।
100 दानें तीन जगह लेकर गीली बोरी में रखकर औसत अंकुरण क्षमता का आकंलन करें ।
बीजोपचार
बीज को थायरम $ कार्बेन्डाजिम (2:1) के 3 ग्राम मिश्रण, अथवा थयरम $ कार्बोक्सीन 2.5 ग्राम अथवा थायोमिथाक्सेम 78 ws 3 ग्राम अथवा ट्राईकोडर्मा विर्डी 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से
उपचारित करें ।
जैव उर्वरक
- बीज को राइजोबियम कल्चर (बे्रडी जापोनिकम)
5 ग्राम एवं पी.एस.बी.(स्फुर घोलक) 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बोने
से कुछ घंटे पूर्व टीकाकरण करें ।
- पी.एस.बी. 2.50 किलोग्राम
प्रति एकड़ की दर से खेत में मिलाने से स्फुर को घुलनशील अवस्था में
परिवर्तित कर पौधों को उपलब्ध कराने में सहायक होता है ।
समय पर बुआई
जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम
सप्ताह के मध्य 4-5 इंच वर्षा
होने पर बुवाई करें ।
कतारों में बोनी
- कम फैलने वाली प्रजातियों जैसे जे.एस. 93-05, जे.एस. 95-60 इत्यादि
के लिये बुवाई के समय कतार से कतार की दूरी 40 से.मी.
रखे ।
- ज्यादा फैलनेवाली किस्में जैसे जे.एस. 335, एन.आर.सी. 7, जे.एस.
97-52
के लिए 45 से.मी. की दूरी रखें ।
बीज की मात्रा
- बुवाई हेतु दानों के आकार के अनुसार बीज
की मात्रा का निर्धारण करें । पौध संख्या 4-4.5 लाख/हे.
रखे ।
- छोटे दाने वाली प्रजातियों के लिये बीज की
मात्रा 60-70
किलोग्राम प्रति
हेक्टेयर की दर से उपयोग करें ।
- बड़े दाने वाली प्रजातियों के लिये बीज की
मात्रा 80-90
कि.ग्रा. प्रति हेक्टयर
की दर से निर्धारित करें ।
- गहरी काली भूमि तथा अधिक वर्षा क्षेत्रों
में रिजर सीडर प्लांटर द्वारा कूड (नाली) मेड़ पद्धति या रेज्ड बेड प्लांटर
या ब्राड बेड फरो पद्धति से बुआई करें ।
- बीज के साथ किसी भी प्रकार के रासायनिक
उर्वरको का प्रयोग न करें ।
कूढ़ एवं नाली पद्धति
संतुलित उर्वरक प्रबंधन:-
- उवर्रक प्रबंधन के अंतर्गत रसायनिक
उर्वरकों का उपयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही किया जाना सर्वथा उचित होता
है ।
- रसायनिक उर्वरकों के साथ नाडेप खाद, गोबर खाद, कार्बनिक
संसाधनों का अधिकतम (10-20
टन/हे.) या वर्मी
कम्पोस्ट 5 टन/हे. उपयोग करें ।
- संतुलित रसायनिक उर्वरक प्रबंधन के
अन्र्तगत संतुलित मात्रा 20:60 - 80:40:20 (नत्रजन:
स्फुर: पोटाश: सल्फर) का उपयोग करें ।
- संस्तुत मात्रा खेत में अंतिम जुताई से
पूर्व डालकर भलीभाँति मिट्टी में मिला देंवे ।
- नत्रजन की पूर्ति हेतु आवश्यकता अनुरूप 50 किलोग्राम यूरिया का उपयोग अंकुरण पश्चात 7 दिन से डोरे के साथ डाले ।
जस्ता एवं गंधक की पूर्ति
- अनुशंसित खाद एवं उर्वरक की मात्रा के साथ
जिंक सल्फेट 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मिट्टी परीक्षण
के अनुसार डालें ।
- गंधक युक्त उर्वरक (सिंगल सुपर फास्फेट)
का उपयोग अधिक लाभकारी होगा । सुपर फास्फेट उपयोग न कर पाने की दशा में
जिप्सम का उपयोग 2.50
क्वि. प्रति हैक्टर
की दर से करना लाभकारी है । इसके साथ ही अन्य गंधक युक्त उर्वरकों का उपयोग
किया जा सकता है ।
सोयाबीन फसल में उवर्रकों की अनुशंसित मात्रा :
पोषक तत्व विवरण (कि.ग्रा./हे.) |
विकल्प 1 |
विकल्प 2 |
विकल्प 3 |
|||
उवर्रक नाम |
मात्रा (कि.ग्रा./हे.) |
उवर्रक नाम |
मात्रा (कि.ग्रा./हे.) |
उवर्रक नाम |
मात्रा (कि.ग्रा./हे.) |
|
नत्रजन20 |
यूरिया |
44 |
डी.ए.पी. |
130 |
एन.पी.के. |
200 |
फासफोरस 60-80 |
सुपर फास्फेट |
400- 500 |
- |
- |
- |
- |
पोटाश40 |
म्यूरेटऑफ़ पोटाश |
67 |
म्यूरेटऑफ़ पोटाश |
67 |
- |
- |
सल्फर20 |
- |
- |
जिप्सम |
200 |
जिप्सम |
200 |
जल संरक्षण उपाय
साधारण सीड ड्रील से बुवाई के समय 5-6 कतारों के बाद फरो ओपनर के माध्यम से
एक कूंड बनाए । खाली कूंड को डोरा चलाते वक्त गहरा कर दे । इससे अधिक वर्षा की
स्थिति में जल निकासी एवं अल्प वर्षा की स्थिति में जल संरक्षण होगा । सीड ड्रिल
के साथ पावडी का उपयोग करें, जिससे जल
संरक्षण एवं उचित पौध संख्या प्राप्त की जा सकती है ।
अंर्तवर्ती खेती
अंर्तवर्ती फसलें जैसे सोयाबीन $ अरहर (4:2), सोयाबीन $ मक्का (4:2) $ सोयाबीन $ ज्वार (4:2) $ सोयाबीन $ कपास (4:1) को जलवायु के क्षेत्र के हिसाब से
अपनायें ।
फसल चक्र
निरंतर सोयाबीन चना के स्थान पर
सोयाबीन - गेहूं, सोयाबीन -
सरसों फसल चक्र को अपनांए ।
नींदा प्रबंधन
खरपतवारों को सोयाबीन फसल में निम्न
विधियों द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है:
- 1. कर्षण विधि
- 2. यांत्रिकी विधि
- 3. रसायनिक विधि
यांत्रिक विधि
फसल को 30-45 दिन की अवस्था तक नींदा रहित रखें । इस
हेतु फसल उगने के पश्चात डोरे/कुलपे चलावे ।
रसायनिक विधि
इस विधि से प्रभावी नींदा नियंत्रण
हेतु अवश्यकता एवं समय के अनुकूल खरपतवार नाशी दवाओं का चयन कर उपयोग करें।
सोयाबीन फसल के लिये अनुशंसित
क्र. |
खरपतवारनाशक |
रसायनिकनाम |
मात्रा/हे. |
1. |
बोवनीके पूर्व उपयोगी(पीपीआई) |
फ्लुक्लोरेलीन |
2.22 ली |
ट्राईफ्लूरेलीन |
2.00 ली. |
||
2. |
बोवनीके तुरन्त बाद(पीआई) |
मेटालोक्लोर |
2.00 ली. |
क्लोमाझोन |
2.00 ली. |
||
पेण्डीमिथालीन |
3.25 ली. |
||
डाइक्लोसुलम |
26 ग्राम |
||
3. |
15-20 दिनकी फसल में उपयोगी |
इमेजाथायपर |
1.00 ली. |
क्विजालोफापइथइल |
1.00 ली. |
||
फेनाक्सीफाप-पी-इथइल |
0.75 ली |
||
हेलाक्सीफाप |
135 मि.ली. |
||
4. |
10-15 दिनकी फसल में उपयोगी |
क्लोरीम्यूरानइथाइल |
36 ग्राम |
फसल सुरक्षा
एकीकृत कीट नियंत्रण के उपाय अपनाएं
जैसे नीम तेल व लाईट ट्रेप्स का उपयोग तथा प्रभावित एवं क्षतिग्रस्त पौधों को
निकालकर खेत के बाहर मिट्टी में दबा दें। कीटनाशकों के छिड़काव हेतु 7-8 टंकी (15 लीटर प्रति टंकी) प्रति बीघा या 500 ली./हे. के मान से पानी का उपयोग करना
अतिआवश्यक है ।
- अ. जैविक नियंत्रण
- खेत में ‘ज्’ आकार की खूटी 20-25 /हे. लगाएं ।
- फेरोमोन ट्रेप 10-12/हे का उपयोग करें ।
- लाईट ट्रेप का उपयोग कीटों के प्रकोप की
जानकारी के लिए लगाएं।
- रसायनिक नियंत्रण
ब्लू बीटल |
क्लोरपायरीफास/क्यूनालफाॅस1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर |
गर्डलबीटल |
ट्राईजोफास0.8 ली./हे. या इथोफेनप्राक्स1 ली./हे. या थायोक्लोप्रीड0.75 ली./हे |
तम्बाकू की इल्ली एवं रोयंदार इल्ली |
क्लोरपायरीफास20 इ.सी. 1.5 ली. /हे या इंडोक्साकार्ब14.5 एस.पी. 0.5 ली./हे. यारेनेक्सीपायर20 एस.सी. 0.10 ली./हे. |
सेमीलूपरइल्ली |
जैविक नियंत्रणहेतु बेसिलस
युरिंजिएंसिस/ ब्यूवेरिया बेसियाना1 ली. या किलो/हे. |
चने की इल्ली एवं तम्बाकू की इल्ली |
|
सोयाबीन के प्रमुख कीट
समेकित रोग प्रबंधन
समेकित रोग प्रबंधन वह पद्धति है
जिसमें सभी उपलब्ध रोग नियंत्रण के निम्न तरीकोंएकीकृत किया जाकर रोग को
- गर्मीमें गहरी जुताई
- संतुलितउवर्रक प्रबंधन
- सही किस्मोंका चयन
- बुआई कासमय
- बीज दरव पौध संख्या
- जल प्रबंधन
- रोग ग्रस्तफसल अवशेषों कोनष्ट करना
- कोलेट्रलव विकल्प परपोशीपोधो का निष्कासन
- खरपतवारनियंत्रण
- फसल चक्रवअंतरवर्तीय फसल
- प्रतिरोधीकिस्मों का प्रयोग
पत्ती धब्बा एवं ब्लाइट: नियंत्रण हेतु कार्बेन्डाजिम या थायोफिनेट मिथाईल का 0.05: (50 ग्रा./100 ली पानी)के घोल का 35-40 दिन में छिड़काव करें ।
बेक्टेरियरल पश्चूल: नियंत्रण हेतु रोग रोधी किस्में जैसे एन.आर.सी.-37 का प्रयोग करें । रोग का लक्षण दिखाई देने पर कासुगामाइसिन का 0.2: (2 ग्राम/ली.) घोल का छिड़काव करें ।
गेरूआ : यह एक फफूंदजनित रोग है जो प्रायः फूल की अवस्था में देखा जाता है जिसके अन्तर्गत छोटे-छोटे सूई के नोक के आकार के मटमेले भूरे व लाल भूरे सतह से उभरे हुए धब्बे के रूप में पत्तीयों की निचली सताह पर समूह के रूप में पाये जाते है । धब्बों के चारों ओर पीला रंग होता है । पत्तीयों को थपथपाने से भूरे रंग का पाउडर निकलता है ।
- रोग रोधी किस्में जैसे जे.एस. 20-29, एन.आर. सी 86 का
प्रयोग करें ।
- रसायनिक नियंत्रण के अन्तर्गत
हेक्साकोनाजोल या प्रोपीकोनाजोल 800 मि.ली.
/हे. का छिड़काव करें ।
चारकोल रोट : यह एक फफूंदजनित रोग है । इस बीमारी से पौधे की जड़े सड़ कर सूख जाती है । पौधे के तने का जमीन से ऊपरी हिस्सा लाल भूरे रंग का हो जाता है। पत्तीयां पीली पड़ कर पौधे मुरझा जाते हैं । रोग ग्रसित तने व जड़ के हिस्सों के बाहरी आवरण में असंख्य छोटे-छोटे काले रंग के स्केलेरोशिया दिखाई देते हैं ।
- रोग सहनशील किस्में जैसे जे.एस. 20-34 एवं जे.एस 20-29,, जे
एस 97-52,
एन.आर.सी. 86 का उपयोग करें ।
- रसायनिक नियंत्रण के अन्तर्गत थायरम$कार्बोक्सीन 2:1 में 3 ग्राम
या ट्रायकोडर्मा विर्डी 5 ग्राम /किलो बीज के
मान से उपचारित करें ।
ऐन्थ्रेक्नोज व फली झुलसनः यह एक बीज एवं मृदा जनित रोग है । सोयाबीन में फूल आने की अवस्था में तने, पर्णवृन्त व फली पर लाल से गहरे भूरे रंग के अनियमित आकार के धब्बे दिखाई देते है । बाद में यह धब्बे फफूंद की काली सरंचनाओं (एसरवुलाई) व छोटे कांटे जैसी संरचनाओं से भर जाते है । पत्तीयों पर शिराओं का पीला-भूरा होना, मुड़ना एवं झड़ना इस बीमारी के लक्षण है ।
- रोग सहनशील किस्में जैसे एनआरसी 7 व 12 का
उपयोग करें ।
- बीज को थायरम $ कार्बोक्सीन या केप्टान 3 ग्राम /कि.ग्रा. बीज के मान से उपचारित कर
बुवाई करें ।
- रोग का लक्षण दिखाई देने पर जाइनेब या
मेन्कोजेब 2 ग्रा./ली. का छिड़काव करें ।
कटाई व गहाई:
- फसल की कटाई उपयुक्त समय पर कर लेने से
चटकने पर दाने बिखरने से होने वाली हानि में समुचित कमी लाई जा सकती है।
- फलियों के पकने की उचित अवस्था पर (फलियों
का रंग बदलने पर या हरापन पूर्णतया समाप्त होने पर) कटाई करनी चाहिए । कटाई
के समय बीजों में उपयुक्त नमी की मात्रा 14-16 प्रतिशत
है ।
- फसल को 2-3 दिन
तक धूप में सुखाकर थ्रशर से धीमी गति (300-400 आर.पी.एम.)
पर गहाई करनी चाहिए ।
- गहाई के बाद बीज को 3 से 4 दिन
तक धूप में अच्छा सुखा कर भण्डारण करना चाहिए ।